Monday, September 29, 2014

गांधी की जर्क तकनीकी

गांधी की जर्क तकनीकी
     
इतिहास में हमेशा उन लम्हों को ही याद रखा जाता है जिन लम्हों ने इतिहास में उथल पुथल की हो,ऐसे ही,जिन्दगी में वे लोग ही याद रह जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन से समाज को दिशा दी हो या जिन्होंने समरसता को  तोड़ा हो,इतिहास में भी सब कुछ दर्ज नही किया जाता,केवल वही दर्ज किया जाता है जो अपने समय में जर्क पैदा करता हो,गांधी जी हमेशा ही सार्वजनिक जीवन में अपने विचारों से और व्यावहारिक जीवन में अपने विचारों के क्रियाकलापों से हमेशा जर्क देते रहे हैं,दरअसल जर्क तकनीकी आज के समय में अध्यापन में विद्यार्थियों पर प्रयोग की जाने वाली वह तकनीकी है जिसके द्वारा अध्यापन के समय कुछ तकनीकी माध्यम से, भाषाई माध्यम से या अन्य किसी व्यवहारिक माध्यम से विद्यार्थी का ध्यान अध्ययन की ओर आकर्षित करने के काम में लाई जाती है,यह तकनीकी इस बेस पर कार्य करती है कि समाज में मौजूद भाषा या कार्यकलापों का इस्तेमाल इस तरह किया जाए जो कि प्रचलन में न हो कुछ नए तरीके से हो,मतलब कि पुराने पत्थरों से नयी इमारत का निर्माण,ऐसा अक्सर सामान्य व्यावहारिक कार्य कलापों में भी उपयोग में लाया जाता रहा है,गांधी जी का सारा जीवन देखें तो उनके व्यवहार से लेकर विचारों तक में यह तकनीक खोजी जा सकती है |
            दरअसल गांधी के बचपन से लेकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम तक के समय को देखें तो यह बात बहुत स्पष्ट हो जाती है कि गांधी जी ने हमेशा ही इस तकनीकी का प्रयोग किया है,विचारों के स्तर पर देखें तो जब गांधी भारत आये तब भारत का अभिजात्य वर्ग एक घोर निराशा में डूबा हुआ था और जिस बात से वह निराश था वह थी अंग्रेजी और अंग्रेजी सभ्यता, इसके बारे में उन सभी का मानना था कि बिना अंग्रेजी जाने या बिना अंग्रेजी सभ्यता को अपनाए भारत का उद्धार नही हो सकता है इसलिए कुछ लोग अंग्रेजी की महत्ता पर जोर दे रहे थे तो कुछ आधुनिक रहन सहन पर और कुछ उपभोग की जरूरतों पर,एक तरह से पश्चिमी सभ्यता का प्रभुत्व सबने स्वीकार कर लिया था,किन्तु गांधी जी ने यहाँ अपने स्वर्णिम इतिहास की याद दिलाकर और पश्चिमी सभ्यता की पोल खोलकर उन्हें  इस नैराश्य से दूर किया और तब उन्होंने भारतीय सभ्यता के मर्म को समझा,उन्होंने पश्चिमी सभ्यता के वाहक रेल,भारी मशीनरी,डाक्टर्स,वकीलों का विरोध इसलिए नहीं किया कि वे इनके व्यवसायों से नफरत करते थे बल्कि इसलिए कि इस सबके माध्यम से उनके घातक परिणामों से उन्हें अवगत कराया जा सके,पूरी हिन्द स्वराज ही इस विचार पर उन्होंने लिखी, इसका एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण यह भी था कि इनके माध्यम से उस समय प्रचलन में आने वाली चीजों के प्रति एक मोहभंग की स्थिति निर्मित हो,दरअसल इस तकनीकी का इस्तेमाल बर्तोल्त ब्रेख्त के नाटकों में भी किया जाता रहा है,जिनमें नाटक के किसी पात्र के माध्यम से या तकनीकी माध्यम से अचानक किन्हीं भावनाओं में बह रहे श्रोताओं के मनोभावों को एक झटके में बदल दिया जाए,ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मनुष्य का अपने यथार्थ से सम्बन्ध बना रहे और वह वास्तविक यथार्थ से अलगाव महसूस न करे बल्कि हमेशा ही उससे जुड़ा रहे,और नाटक को अपनी तार्किक दृष्टि से ही देखे| गांधी जी का जोर भी इस बात पर हमेशा रहा कि भारतीय सभ्यता में वे सब गुण मौजूद हैं जो इसे एक महान सभ्यता बनाते हैं बस जरुरत इसे तार्किक दृष्टि से समझने की है, यह तार्किकता बनी रहे इसलिए वे इस तरह के प्रयोग करते रहते थे,वे भारतीय सभ्यता में मौजूद अश्पृश्यता,ऊंच नीच आदि का विरोध भी इसी आधार पर करते थे और कहते थे कि  वेदों में भी लिखीं बातें सिर्फ इसलिए नहीं मान लीं जानी चाहिए कि वे सदियों से प्रचलन में हैं बल्कि उन्हें तर्क की कसौटी पर कसने के बाद ही स्वीकार किया जाना चाहिए |    

व्यावहारिक स्तर पर उनके जीवन के ऐसे अनेक वाकये हैं जिनमें इस तकनीकी प्रयोग बहुत ही स्पष्ट देखा जा सकता है जैसे एक बार जब असहयोग आन्दोलन की  पृष्ठभूमि  तैयार की जा रही थी तब देश के बड़े बड़े नेता जिनमें नेहरु जी,सरदार पटेल आदि गंभीर चिंतन कर रहे थे अचानक गांधी जी उठकर जाते हैं और अपनी जख्मी बकरी के पैरों में मिट्टी लगाने लगते हैं,भारत छोड़ो आन्दोलन के समय जब पूर्ण आजादी की मांग पर बैठक हो रही थी जहाँ मौलाना आज़ाद,कृपलानी,नेहरु,जिन्ना आदि मौजूद थे तब अचानक गांधी जी उठकर वेटर के हाथ से तस्तरी में रखी चाय सर्व करने लगते हैं,रिचर्ड एटनबरो ने इसे बखूबी फिल्माया है,ऐसे कई उदाहरण उनके जीवन से लिए जा सकते हैं जिनमें उन्होंने बखूबी इसका इस्तेमाल किया है,उनके अहिंसक दर्शन में इसके बीज देखे जा सकते हैं, दो दो विश्व युद्ध देखने वाली इस घोर हिंसक सदी में अचानक अहिंसा का दर्शन जर्क तकनीकी ही तो है| उनकी इस तकनीक पर पूरा का पूरा एक शोध किया जाना लाजिमी बनता है|